Wednesday, July 22, 2020

दिल्ली का कोरोना सेरिओलॉज़ी सर्वे : कोरोना के आंकड़ों को देखने का नज़रिया और जादूगरी

 दिल्ली में कराये गए कोरोना के सेरिओलॉज़ी सर्वे के रिजल्ट कल ही आये है , और इस रिपोर्ट का लब्बोलुवाब यह है की 10 जुलाई  तक के 21387 रैंडम लोगों का सैंपल लिए गए (रैंडम मतलब वो लोग जो जिनका कभी कोरोना टेस्ट नहीं हुआ , जिनका कोई इलाज़ नहीं हुआ जो पूरी तरह से स्वस्थ हैं ) . इस सर्वे की रिपोर्ट में पाया गया की 23.48  फीसदी लोग में कोरोना की एंटीबाडी है मतलब इनको कोरोना हुआ और अपने आप ठीक हो गया।  इस आधार पर देखा जाए तो दिल्ली की 2 करोड़ की जनसँख्या में से लगभग 4600000 लोग 10 जुलाई कोरोना से संक्रमित हुए और ठीक हो गए.
अब इस रिपोर्ट को देखने के 2 नज़रिये हो सकते हैं :
1. 10  जुलाई  तक  46 लाख लोग संक्रमित हुए और 10 जुलाई तक दिल्ली में रिपोर्टेड मौतें थी 3300   . इस आकंड़े के हिसाब से संक्रमित मृत्यु दर(IFR ) हुयी  0.07  फीसदी , नार्मल फ्लू की मृत्यु दर 0.1 फीसदी से बहुत कम।  कुछ लोग कहेंगे मृत्यु के आकंड़े कम रिपोर्ट किये गए तो उनके लिए मैं थोड़ा आकंड़ा बढ़ा देता हूँ , 10 जुलाई  तक मौत का आंकड़ा 5000 मान लेते है और अब इस आकड़े के साथ संक्रमित मृत्यु दर(IFR ) हो जाती है 0.1 फीसदी मतलब नार्मल फ्लू की मृत्यु दर के बिल्कुल बराबर । अब आप बताइए नार्मल फ्लू के लिए कभी इतना डराया गया , लॉकडाउन किया गया ? सारा  धंधा पानी बन्द किया गया? नहीं न तो फिर कोरोना का बहाना बना कर ये सब क्यूँ किया गया?

2. अब दूसरे नज़रिए से देखते हैं , दिल्ली में 46 लाख लोग कोरोना संक्रमित हो गए इन्होंने पता नहीं कितने और लोगों को कर दिया होगा अब क्या होगा ? अगर 5 फीसदी लोगों को भी वेंटीलेटर की जरूरत पड़ जाती तो? क्या 2 लाख 30 हज़ार लोगों को वेंटीलेटर मिल पाते ? हाय तौबा ! सब बन्द कर दो , घरों में दुबक जाओ पुलिस का सम्मान करो ताली बजाओ , थाली बजाओ। सरकारे आला की बात मानों। लेकिन हो जाता और होने में बहुत फर्क है। होने को तो दिल्ली में लॉकडाउन के टाइम पे 4 बार भूकंप आया जिसकी तीव्रता 3 से 4 थी अगर ये बढ़कर 8 से 9 हो जाती तो ?? सब के सब अपने घरों में ही दबकर मर जाते , फिर क्या करें चलें सब घर बार छोड़ के जंगलों में खुले आसमान के नीचे रहें चलके ? फिर आप कहेंगे नहीं ऐसा कैसे कर सकते हैं , भूकंप आया तो हल्का ही । तो मेरे भाई 2 लाख 30 हज़ार लोगों को भी वेंटीलेटर की जरूरत पड़ी तो नही न सब खुद ही ठीक हो गए फिर इतनी हाय तौबा क्यूँ?

ज्यादातर लोग रिपोर्ट को दूसरे वाले नज़रिये से ही देखेंगे क्यूंकि प्रचार के ज़रिये आपके दिमाग में  पहले से ही डर बैठा दिया गया है और आपके दिमाग पहले से ऐसे न्यूरल नेटवर्क बना दिए गए हैं जो इन आंकड़ों को देख के डरने वाला नज़रिया ही अख्तियार करेंगे. फिर भी मैं कहूंगा मेडिकल साइंस को लेकर बहुत सारा डाटा इंटरनेट पर उपलब्ध है उसे पढ़िए समझिये और फिर किसी की बात मानिये , नहीं तो उसी डाटा को तोड़ मरोड़ कर आपके  सामने अर्थ का अनर्थ कर दिया जाएगा  . 

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