Sunday, April 19, 2015

सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राह पर हिटलर की नाज़ायज़ औलादें

नयी सरकार के गठन के बाद से पिछले १० महीनो में कितना विकास हुआ ये तो  सभी  जानते ही हैं।  कुछ
हुआ हो या न हुआ हो किन्तु कुछ घटनाएँ ऐसी है जिनके बारे में आपको निरंतर सुनने को मिला होगा , जैसे
फलां चर्च में तोड़फोड़ , कंही नन का बलात्कार , कंही मस्जिद तोड़ने की बात ,  कंही हिन्दू जीवन शैली की बात तो कंही घर वापसी  जैसे मुद्दे , कोई १० बच्चे पैदा करने की नसीहत दे रहा है , तो कोई चर्च में हनुमान की मूर्ति टांग  रहा है , इसी तरह की और भी कई उदाहरण आपको मिल जायेंगे , अब  बात करते हैं दूसरे पक्ष की तो वंहा भी कोई घर बचाने की नौटंकी करके हरिजनों को इस्लाम कबूल करवा  रहा है , तो कंही पाकिस्तान ज़िंदाबाद के  नारे लग रहे हैं .

गौर करने की बात एक तरफ योगी , स्वामी , साध्वी की फ़ौज खड़ी है जो बीजेपी और आरएसएस जैसे संघठनो से सम्बद्ध हैं और दूसरी तरफ आज़म , ओवैसी , गिलानी जैसे इस्लाम के पैरोकार कर्णधार हैं। सोचने वाली बात यह है की अचानक यह सारे धर्म के ठेकेदार इतने सक्रिय क्यों हो गए और धर्म के नाम पर सामाजिक वैमनष्यता फ़ैलाने की पुरज़ोर कोशिश में लग गए , यंहा तक की मौजूदा सरकार के सांसद भी ऐसे बयांन देने में पीछे नहीं हैं और सरकार की इनपर लगाम लगाने की कोई ख़ास इक्छाशक्ति नज़र नहीं आ रही ? इन घटनाओं को देखते हुए ऐसा लगता कि प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ये सब केंद्र में बीजेपी की सरकार और उसके साथी आरएसएस जैसे संगठनो के इशारे पर हो रहा है।  आरएसएस जैसे फासीवादी संगठनो ने इतनो सालों की कड़ी मेहनत से जो फासिस्टों कि फ़ौज तैयार की थी , अब समय आ गया है जब वे इसका इस्तेमाल अपने लक्ष्य के लिए करें। इनका अपने लक्ष्य में कामयाब होने का सिर्फ एक ही तरीका है और वह है हिन्दू और मुस्लिम का पूर्ण ध्रुवीकरण , गौरतलब बात यह है कि पूर्ण ध्रुवीकरण की राजनीति तभी सफल हो सकती है जब बहुसंख्यक के साथ साथ अल्पसंख्यकों के  भी ध्रुवीकरण की ज़मीन तैयार हो।  और मौजूदा समय में जंहाँ एक तरफ हिन्दू फासिस्ट अपने काम में लगे हुये हैं वंही दूसरी तरफ मुस्लिम फासिस्टों को भी पूरा मौका दिया जा रहा है ताकि आने वाले समय में दोनों कौमो को एक दूसरे का दुश्मन बनाकर ये अपने नापाक मंसूबों में कामयाब हो सकें।

ऐसे में इन फासिस्टों का पहला टारगेट होता है वो युवा वर्ग जो बेरोज़गारी , गरीबी जैसी समस्यायों से परेशान है , ऐसे युवा वर्ग को बड़ी आसानी से ये लोग यह समझाने में कामयाब हो जाते हैं की सारी समस्यायों की जड़ दूसरी कौम है और उसे एक कौम के खिलाफ भड़काते हैं।  और ये कोशिशें तब और भी तेज हो जाती है जब पूंजीवाद संकट के दौर से गुजर रहा हो (जैसा की लेनिन ने  कहा था फासीवाद सड़ता हुआ पूंजीवाद है ).

ऐसे दौर में इन साम्प्रदायिक  ताकतों के मंसूबो  नाकाम करने के लिए जरुरी है की जनता को मौजूदा आर्थिक , सामाजिक संकट के सही पहलुओं से अवगत कराया जाये और ये समझाया जाये की गरीबी , बेरोज़गारी जैसी समस्यायों के लिए वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था जिम्मेदार है न की कोई धर्म समुदाय।  और इन समस्यायों से निजात भी तभी मिलेगी जब मेहनतकश इस मौजूदा शोषक व्यवस्था को उखाड़ फेंकेगा। अगर जनता ये समझने में नाकामयाब रही तो वह दिन दूर नहीं जब यंहा भी हिटलर के दौर की पुनरावृत्ति होगी।

(Cartoon : Times of India)
(Photo     : roarmag.org)


Saturday, March 28, 2015

वर्ग हितों की बेशर्म अभिव्यक्ति था 25 मार्च का लाठीचार्ज

केजरीवाल सरकार को उसी के द्वारा किये गए चुनावी वादों की याद दिलाने गए मज़दूर कार्यकर्ताओं पर जिस बर्बर तरीके से पुलिस ने लाठीचार्ज किया  और जिस अमानवीय तरीके से कार्यकर्ताओं (जिनमे कई महिलाएं/लड़कियां भी शामिल थे) की पिटाई की गयी उससे यह साफ़ पता चलता है की हमारे देश में फासीवाद किस कदर अपने पैर फैलाता जा रहा है।  और जो लोग केजरीवाल को गरीबो का मसीहा मानते है उनको भी यह साफ़ हो गया होगा की ये आम आदमी का रोना रोने वाले वास्तव में किस आम आदमी के साथ हैं।  दरअसल केजरीवाल और उसके बाकी लग्गू भग्गू भी वही छुपे सियार है जो बकरी की खाल ओढ़ कर वोट माँगता है फिर चुनाव जितने के बाद उन्ही को खाने लग जाता है।  वादे तो इस मक्कार ने भी खूब लोकलुभावन किये किन्तु जब मज़दूरों ने उनकी याद दिलाने की ठानी तो यह अपने बिल में छुपा बैठा रहा और पुलिस को भेज दिया लाठियां भांजने।  यह वही केजरीवाल है जो एक बार अपने विधायक के लिए दिल्ली पुलिस के खिलाफ सड़क पर नौटंकी करने आ गया था।  और आज जब मज़दूरों की बेरहमी से पिटाई हुई तो न किसी विधायक और न ही किसी पार्टी के नेता का कोई बयान आया वैसे ये सारे के सारे मीडिया में नौटंकी करने रात दस दस बजे तक बैठे रहेंगे।  
                                  दिल्ली सरकार के इस रवैये से यह तो साफ़ हो गया है की बाकी पार्टियों की तरह ये सब भी रक्तपिपासु व्यापारियों के हितों को ही साधने वाली सरकार है।  और अगर मज़दूरों ने अपनी मूलभूत मांगे भी उठाई तो उनका ऐसे ही बर्बर तरीके से दमन किया जायेगा और उनके साथ जानवरों जैसा सलूक किया जायेगा।  25 मार्च की घटना से कम से कम इस बहुरूपिये का असली चेहरा तो सामने  गया।  यह साफ़ हो गया है की इसका हित भी खाते पीते मध्यवर्ग और व्यापारी वर्ग से ही जुड़ा हुआ है जो की पूरी तरह से फासिस्ट और मज़दूर विरोधी है. 

Monday, March 23, 2015

शहीदे आज़म भगत सिंह का सपना


उसे यह फ़िक्र है हरदम नया तर्ज़े-ज़फा क्या है,
हमे यह शौक़ है देखें सितम की इन्तहा क्या है।
दहर से क्यों खफ़ा रहें, चर्ख़ का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें।
कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहले-महफ़िल,
चराग़े-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ।
हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली,
ये मुश्ते-ख़ाक है फानी, रहे रहे न रहे।

                 (----------भगत सिंह)      



क्रांति से हमारा क्या आशय  है, यह स्पष्ट है । इस शताब्दी मे इसका सिर्फ एक ही मक़सद हो सकता है - जनता के लिये जनता द्वारा  राजनीतिक शक्ति हासिल करना  । वास्तव मे यही है क्रांति , बाकी सभी विद्रोह तो सिर्फ मालिको के परिवर्तन द्वारा पूंजीवादी सड़ाँध   को ही आगे बढ़ाते  हैं।   किसी भी हद  तक लोगो से या उनके उद्देश्यों   से जतायी हमदर्दी जनता से वास्तविकता छिपा  नही सकती , लोग छल को पहचानते हैं।  भारत में हम    भारतीय श्रमिक  शासन से कम कुछ नहीं   चाहते। भारतीय श्रमिको को - भारत में साम्राज्यवादियों और उनके मददगार को हटाकर जो उसी आर्थिक के पैरोकार हैं , जिसकी जड़े शोषण पर आधारित हैं -आगे जाना है। हम गोरी बुराईयों की जगह काली बुराईयों को लाकर कष्ट नहीं उठाना चाहते , बुराईयाँ स्वार्थी समूहों की तरह ,  दूसरे का स्थान लेने को तयार हैं। 
हमें  यह बात याद रखनी चाहिए की श्रमिक क्रांति के अतिरिक्त न किसी और क्रांति की इक्छा करनी चाहिए न ही वह सफल होगी।   (--क्रांतिकारी कार्यक्रम का मसविदा - भगत सिंह )

हम भारतवासी क्या कर रहें हैं? पीपल की एक डाल टूटते ही हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं चोटिल हो जाती हैं. बुतों को तोड़ने वाले मुसलमानों के ताजिये नामक कागज़ के बुत का कोना फटते ही अल्लाह का प्रकोप जाग उठता है और फिर वह "नापाक"हिन्दुओं के खून से कम किसी वस्तु से संतुष्ट नहीं होता।  मनुष्य को पशुओं से अधिक महत्व देना चाहिए , लेकिन यहाँ भारत में लोग पवित्र पशु के नाम पर एक दूसरे का सर फोड़ते हैं।  
धार्मिक अन्धविश्वास  कट्टरपन हमारी प्रगति में बहुत बड़े बाधक हैं और हमें उनसे हर हालत में छुटकारा पा लेना चाहिए।  " जो चीज़ आज़ाद विचारों को वर्दाश्त नहीं कर सकती उसे समाप्त हो जाना चाहिए " 
(- नौजवान भारत सभा , लाहौर  , का घोषणापत्र  , भगत सिंह )

अंग्रेजी दासता के विरुध  संघर्ष  तो हमारे युध  का पहला मोर्चा है  , अंतिम लड़ाई  तो   शोषण  के  विरुध  है चाहे वह मनुष्य द्वारा मनुष्य का हो या एक राष्ट द्वारा दूसरे राष्ट का।  (-- भगत सिंह) 

मेहनतकश की तमाम आशाएं अब सिर्फ समाजवाद पर टिकी हैं और सिर्फ यही पूर्ण स्वराज्य और सब भेदभाव ख़त्म करने में सहायक साबित हो सकता है।  (-- भगत सिंह) 

भगत सिंह ने यह विचार आज़ादी की लड़ाई के वक़्त लिखे थे।  और आज़ादी के ७७ सालों के बाद भी यही लगता है की हम वंही खड़े हैं।  उन्होंने जिन बातों की चेतवानी दी थी आज वही सब घटित हो रहा हैं , पूँजीवादी शोषण अपने चरम पर है और पूरा देश आज काली बुराईयों की गिरफ्त में आ चुका  है , धार्मिक कट्टरपन पहले ज्यादा भयानक रूप में हमारे सामने खड़ा है।  मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण पूरी तरह हावी चुका  है और गरीब , नौजवान देसी विदेशी पूंजीपतियों के सामने अपने आप को बेचने पर मजबूर हैं।  भगत सिंह के विचारों के विपरीत कार्य करने वाले संगठन और नेता उन्हें श्रन्धांजलि देने की होड़ लगाये हुए हैं और उनके विचारों की बात करते ही मुह मोड़ने लगते हैं। ऐसे अंधकार भरे समय में यह जरुरी है की समझदार युवा वर्ग उनके अधूरे काम को अपने हाथों में ले और उनके संदेशों को जन  जन तक ले जाए।   आज के दौर में यह जरुरी है की  मेहनतकश और शोषित जनता   को भगत सिंह के विचारों तले संघठित किया जाये और उनके अधूरे सपने (श्रमिक क्रांति) को साकार किया जाये।   श्रमिक क्रांति के द्वारा ही सही मायने में आज़ादी हासिल की जा सकती है और ऐसे समाज की स्थापना की जा सकती है जो मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण  मुक्त एक सच्चा सामाज़वादी समाज होगा।  हमें यह संकल्प लेना होगा की हम भगत सिंह को सिर्फ याद करने तक ही सीमित  जाएँ , अपितु आम मेहनतकश में दोबारा क्रांतिकारी अलख जलाने के लिए उसी क्रांतिकारी स्परिट के साथ जुट जाना होगा तभी सही मायने में भगत सिंह का सपना साकार होगा।