Poem

जो जीता है सच्चे इन्सान कि तरह
वो नहीं बैठेगा चुप इस घुटम भरी ज़िन्दगी को स्वीकार करते हुए
वो तो लडेगा मुक्ति स्वप्नों को साकार करने के लिए
अनवरत अविरल बहते जल कि तरह
चट्टानों से टकराते हुए
वो रास्ता बनाएगा मुक्ति के सागर से मिलने के लिए
और एक दिन वो साकार करेगा अपने स्वप्न को
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भूतो के झुण्ड गुजरते हैं
कुत्तों - भैंसों पर हो सवार
जीवन जलता है कन्डो- सा
है गगन उगलता अन्धकार

यूँ हिन्दू राष्ट्र बनाने का
उन्माद जगाया जाता है
नरमेघ यज्ञ में लाशों का
यूँ डेर लगाया जाता है

यूँ संसद में आता बसंत
यूँ सत्ता गाती है मल्हार
यूँ फासीवाद मचलता है
करता है जीवन पर प्रहार

इतिहास यूँ रचा जाता है
ज्यों हो हिटलर का अट्टहास
यूँ धर्म चाकरी करता है
पूंजी करती बैभव विलास .
- Katyayani.