Saturday, December 3, 2016

मैं उतना ही देशद्रोही हूँ , जिनते आप देशभक्त हैं

देशभर के सिनेमा हालों में राष्ट्रगान बजाने  का फरमान सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से आ चूका हैं और यह भी अनिवार्य है की आप सम्मान में खड़े हों , वन्ही एक अन्य फैसले में न्यायालय ने कार्यवाही शुरू  करने से पहले न्यायालयों में राष्ट्रगान बाजाने से मना  कर दिया. सही भी है जन्हा इन्साफ दिया जाता ( सॉरी ख़रीदा और बेचा जाता|) हो वंहा राष्ट्रगान का क्या काम . देशभक्ति दिखाने का सारा ज़िम्मा तो मूवी देखने गए लोगों ने ही उठा रखा है. फैसला आने से पहले ही हम कई खबरों में सुन चुके हैं की सिनेमा हाल में राष्ट्रगान पे  खड़े न होने की वहज से मारपीट की गयी वो भी विकलांग व्यक्ति के साथ तो अब न्यायालय के फैसले के बाद क्या होगा आप अंदाजा लगा सकते हैं. दरअसल बात तो यह है की राष्ट्रगान पे खड़े होने या बैठे रहने से देशभक्ति का क्या रिश्ता और इससे राष्ट्र का अपमान कैसे हो जाता है.
शायद कम ही लोगों को पता होगा की राष्ट्रगान के रचयिता रवीद्रनाथ टैगोर लिखते हैं " देशप्रेम हमारा आखिरी अध्यात्मिक आसरा नहीं बन सकता. मेरा आश्रय मानवता है . मैं हीरे के दाम में कांच नहीं खरीदूंगा और जब तक मैं जिंदा हूँ मानवता पर देशप्रेम की जीत नहीं होने दूंगा." 

देशप्रेम पर मानवता की जीत क्या हो सकती है इस बात को हम हिटलर जैसे तानाशायों से समझ सकते हैं. हिटलर भी खुद को बहुत बड़ा देशभक्त कहता था और उसने देशभक्ति के नाम पर क्या किया सारी दुनिया जानती हैं. 
शायद हमारा समाज अभी इतना परिपक्व नहीं हुआ है की वो राष्ट्र और देशभक्ति को समझ सके , वो सम्मान और अपमान को परिभाषित कर सके , वो तो बस देश का नाम आते ही प्रतीकों की राजनीति करने लगता हैं , जी हाँ प्रतीकों की. दरअसल हमारे समाज में सामंती मूल्य कंही गहरे जड़ जमाये बैठे हुए हैं तभी तो लोग मानवता से इतर प्रतीकों की राजनीति करते हैं, सम्मान के लिए अदालत से फरमान जारी किये जाते हैं. आप राष्ट्रगान पे खड़े नहीं हुए , आपने भारत माता की जय नहीं बोला , आप ने राष्ट्र के ध्वज को सलाम नहीं किया , वन्दे मातरम नहीं बोला तो आप देशद्रोही बन माने जायेंगे, और अगर आप ये सारी नौटंकियाँ करते हुए भ्रष्टाचार करिए , व्यभिचार करिए , अदालत में जज की कुर्सी पे बैठ के इन्साफ का सौदा करिए तो भी आप पुरे देशभक्त कहलायेंगे. ये सारे देशभक्त जो राष्ट्र और राष्ट्रगान के नाम पे इतना हल्ला काटने में लगे हुए हैं इनसे मैं पूछना चाहूँगा कि जब भुखमरी की सूचि में देश का नाम टॉप कर रहा था तब इन्होने कितना हल्ला काटा था? देश के मजदूरों और किसानो की हालात पे कितना हल्ला काटा गया . इतने सारे पूंजीपति देश का अरबों रुपया डकार गये तब आपने हल्ला क्यूँ नहीं काटा. जब देश में बोरोजगारी अपने चरम पे है तब आप हल्ला काटने क्यूँ नहीं आये. आप सिनेमा हाल में एक विकलांग को पीट सकते है देशद्रोही साबित कर सकते हैं, किन्तु वन्ही जब कोई बड़ा नेता या पूंजीपति भ्रष्टाचार करता है तो आप चूं तक नहीं करते , यही है आपकी देशभक्ति का खोखलापन और यही है आपकी प्रतीकों की राजनीति.
 दरअसल सम्मान करना या न करना व्यतिगत मामला है . आप आदेश देके सम्मान नहीं करवा सकते . आदेश देके सम्मान करने की परंपरा सामंती समाज की सोच है. किसी भी यूरोपियन देश का उदाहरण ले लीजिये, सबका अपना राष्ट्रगान है उसके सम्मान का कोड ऑफ़ कंडक्ट है , लेकिन कंही भी मोरल पोलिसिंग नहीं है न ही कोई सजा का प्रावधान है. अमेरिका में लोग झंडे के प्रिंट का कच्छा पहन लेते हैं तो इसका मतलब ये तो नहीं की वो देशद्रोही हो गये या उनका देश तरक्की नहीं कर रहा, सबको पता है की वो हमसे कंही ज्यादा आगे हैं. वन्ही दूसरी तरफ हम अभी भी प्रतीकों की राजनीति में उलझे हुए हैं , वो व्यक्ति जो राष्ट्रगान को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुच गया शायद ही कभी उसने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कोई लड़ाई लड़ी हो .  देश के हर एक सरकारी दफ्तर से लेके , संसद तक और सारे न्यायालयों में आपको झंडा लटका हुआ मिल जायेगा , सारे अफसर और नेता राष्ट्रगान  बजने पे सावधान की मुद्रा में खड़े पाए जाते हैं , और वही फिर सम्मिलित लूट खसोट में लग जाते हैं , क्या आप उन्हें देशभक्त कहेंगे ? अगर हाँ तो फिर मैं देशद्रोही ही ठीक हूँ .

रविंद्रनाथ टैगोर की बात आगे करते हैं उन्होंने अपनी पुस्तक राष्ट्रवाद में लिखा है " आज़ाद देशो में ज्यादातर लोग आज़ाद नहीं होते वे माइनॉरिटी के तय लक्ष्यों की तरफ बढ़ते रहते हैं . वे अपने भावाप्रवाह  का भंवर जाल बना लेते हैं और भंवर की गतिशीलता में एक शराबी की तरह झूमते रहते हैं और इसे ही आजादी मान लेते हैं ."
और यह राष्ट्रवाद वही भंवर है जिसमे आप शराबी की तरह झूम रहे हैं .  राष्ट्र खुद में कुछ नहीं होता राष्ट्र का मतलब ही वंहा के लोगों से है और कोई भी सम्मान या देशभक्ति वंहा के लोगों से ऊपर नहीं जा सकती, इसलिए मेरे छदम देशभक्तों हीरे के दाम में कांच मत खरीदो. लोग महत्वपूर्ण है , मानवता सबसे ऊपर है.  वास्तविक लोकतंत्र की परिभाषा समझो . देशद्रोह राष्ट्रगान या ध्वज में नहीं है देशद्रोह है गलत को गलत न कहने में , देशद्रोह है राष्ट्र के नाम पे लूट करने में , देशद्रोह है जनता के जनवादी अधिकारों का हनन करने में . 

तो अगर आप खुद को  सच में देशभक्त कहते हैं तो देश में हो रही इस सम्मिलित लूट के खिलाफ आवाज़ उठाईये . मैंने देखा है इतने दिनों से फेसबुक पे मैं सरकार के गलत कार्यो के खिलाफ लिखता रहा , पूंजीपतियों की लूट के बारे में बोलता रहा . मजदूरों और किसानो के शोषण के बारे में शेयर करता रहा तब मुझे कोई देशभक्त दिखाई नहीं   दिया और जब मैंने राष्ट्रगान के बारे में  बोल दिया तो लोग मुझे देशद्रोही कहने लगे ,  मेरे खिलाफ FIR तक लिखवाने की धमकियाँ देने लगे . और कुछ तो ऐसे भी है जो बेशर्मो की तरह सरकार के गलत कदमों का समर्थन करने में लगे हुए गालियाँ बक रहे हैं. तो मेरे दोस्त अगर आप इतने देशभक्त हैं की आपके अन्दर की मानवता मर गयी है और इतने अमानवीय बन चुके हैं की आपको देश के आम जन की समस्याएं दिखाई नहीं पड़ रही तो आपको आपकी देशभक्ति मुबारक. आपकी इस घटिया देशभक्ति के आगे मेरा देशद्रोही होना ही ठीक है.