अपराध का प्रश्न कानून व्यवस्था से हल नहीं किया जा सकता . अपराध पैदा
होता है सामाजिक व्यवस्था और माहौल से . और बलात्कार की हाल में ही हुई
घटना के बाद से मैं यही सोच रहा हूँ की क्या धरना प्रदर्शन में शामिल लोग
वास्तव में लड़कियों के प्रति अपनी मानसिकता बदलने के लिए तैयार है? अगर
हाँ तो ये लोग तब क्यों कोई प्रश्न नहीं उठाते जब मीडिया से लेकर फिल्म
जगत तक लड़कियों को एक माल के रूप में प्रस्तुत किया जाता है रोज़ अखबारों
में अधनंगी तस्वीरों में लड़कियों को उपभोग की वस्तु के रूप में दर्शाया
जाता हैं . तब तो सारे लोग बड़े मज़े से "मुन्नी ","शीला ","चिकनी चमेली ",
"फेविकोल से" और न जाने क्या क्या की जवानी पर आहें भरते नज़र आते हैं . और
इन फूहड़ और अश्लील गानों को कलाकार की कला कहकर खुश हो जाते हैं . जब
खुलेआम डेल्ही टाइम्स जैसे अखबारों में लड़कियों को " बोम्ब ", टोटा या हॉट
कहकर संबोधित किया जाता हैं , और रेडियो चैनल पर भी दिनभर कुछ ऐसा ही
प्रचारित किया जाता है तब यह सारी जनता कंहा चली जाती है , वास्तव में
तब तो लोग इन सारी चीजों से बहुत खुश होते हैं और इंजॉय करते हैं . आजकल
के युवा वर्ग से आप मिलकर देखिये तो आपको पता चल जायेगा की की लड़कियों के
बारे में उनके क्या विचार है . और कई बार तो लड़कियां इस अश्लीलता का
समर्थन करती नज़र आतीं हैं , उन्हें यह नहीं पता की ये आधुनिकता नहीं है ,
वास्तव में यह आधुनिकता के नाम पर लड़कियों का सामाजिक अवमूल्यन हैं , इस
अश्लीलता के द्वारा उनका अमानवीकरण करके उन्हें उपभोग की वस्तु के रूप में
प्रस्तुत किया जाता है . वास्तव में पूंजीवादी समाज सारे प्रचार तंत्र का
इस्तेमाल करके युवा वर्ग को जो आधुनिकता सीखा रहा वह आधुनिकता होकर
अश्लीलता हैं . समाज में स्त्रियों को एक तरह से सेक्स की मशीन के रूप में
प्रस्तुत किया जाता है जिसके एक एक पुर्जे को सजाने सवारने केलिए भिन्न
भिन्न प्रकार के उत्पाद मौजूद हैं . और उन उत्पादों का प्रचार ऐसे किया
जायेगा की अगर आज के समाज में आप सेक्सी नहीं दिखती तो आपका जीवन बेकार है .
अगर आप ऐसे माहौल को स्वीकार कर लेते है तब इंडिया गेट पर जाकर चीखना
बेकार है ऐसे माहौल में न जाने लोग कितनी ही लड़कियों का मन ही मन रोज़
बलात्कार करते हैं . इसलियें जरूरी है की पुरुष पहले स्त्रियों का सम्मान
करना सीखे और स्त्रियाँ भी अपने सम्मान करवाने का बीड़ा उठायें और उन्हें
वस्तु के रूप में प्रस्तुत करने वाले इस प्रचार तंत्र का विरोध करें . जबतक
स्त्री विरोधी सामाजिक मानसिकता नहीं बदलेगी इस तरह की घटनायें होती
रहेंगी .