Saturday, June 3, 2023

धर्म नहीं , पुरुष प्रधान पितृसत्ता ज़िम्मेदार है स्त्रियों पर होने वाले जघन्य अपराधों के लिए।

अभी हाल ही में हुई कुछ घटनाओं पर नज़र डाले तो एक बात कॉमन है की किसी लड़की की हत्या बर्बरता से की गयी है , जैसे आफताब ने अपनी गर्लफ्रेंड को टुकड़े टुकड़े कर फ्रिज में भर दिया , या साहिल ने साक्षी को चाकू से गोदकर मार  डाला और सर को पत्थर से कुचल दिया , अभी  कल मुंबई में पुलिस को  बिना सर की एक लड़की की लाश मिली जांच में पता चला कि उसके पति  मिंटू  सिंह और भाई ने मिलकर उसकी हत्या की क्योंकि उन्हें उसके चरित्र पर शक था , आगरा में एक हिन्दू बाप अपनी बेटी को मारकर सूटकेस में भरकर फेंक देता है क्यूंकि उसने बाप की मर्ज़ी के बिना शादी कर ली , सूरत में एक बाप अपनी बेटी को चाक़ू से गोदकर मार देता है , दिल्ली में ही २४ साल का  साहिल गहलोत  अपनी शादी के दिन गर्लफ्रेंड को मारकर  लाश फ्रिज में छिपा देता है और उसके बाद शाम को धूमधाम से शादी करता है।  इस तरह की सैकड़ों घटनाएं देश में रोज़ हो रही है जंहा गुनाह करने वाला कभी हिन्दू होगा तो कभी मुसलमान , और वो दूसरे धर्मों का भी हो सकता है।  एक बात कॉमन है की ऐसे गुनाह करने वाला पुरुष है और मरने वाली औरत , क्यूँ ? क्यूंकि आप किसी भी धर्म को मानते हों सभी पितृसत्ता का ही समर्थन करते नज़र आएंगे , और धर्म चाहे कोई भी हो समाज है पुरुष प्रधान ही।  और इस समाज में स्त्रियों को पुरुष हमेशा सम्पत्ति के रूप में देखता है और उसे अपना ग़ुलाम  समझता है। और ऐसे समाज में जब पुरुष को लगता है स्त्री अपनी मर्ज़ी से निर्णय ले रही है और अपनी ज़िन्दगी अपनी मर्ज़ी से जीना चाहती है तो पुरुष के अहं को चोट पहुँचती है उसे लगता है मैं जिसे अपना ग़ुलाम समझता हूँ वो मेरी मर्ज़ी के बिना कैसे निर्णय ले सकती है।  और ऐसे में वो सबक सिखाने के लिए बर्बरता पर उतर आता है। यह बर्बरता बिलकुल वैसी ही है जैसी ग़ुलामी प्रथा में मालिक अपने ग़ुलामो पर करते थे।  


इन घटनाओं में एक अंतर और देखने को मिलता है वो यह कि जंहा अपराध करने वाला मुसलमान हैं वँहा मीडिया दिनरात कवरेज करेगा और लव जिहाद और क्रूरता का रोना रोयेगा , लेकिन जंहा अपराध करने वाला हिन्दू है (हालाँकि क्रूरता वंहा भी हुई है ) उस घटना पर कोई रिपोर्टिंग नहीं होती। जिससे साफ़ पता चलता है की मीडिया में सनसनी फ़ैलाने वालों का मुख्य एजेंडा देश में सांप्रदायिक नफरत फ़ैलाने का है , अपराध और उसके मूल कारणों से उनका दूर दूर तक कोई नाता नहीं।   सच्चाई तो ये है की ये जितने भी बजरंगी  हिन्दुओं में रहनुमा बने घूम रहे है ये खुद उसी पुरुष प्रधान मानसिकता से पीड़ित हैं , ये वैलेंटाइन डे पर पार्कों और रेस्त्रां में लड़के लड़कियों को पीटते नज़र आएंगे , इनके खुद के घर में देखा जाएँ को ये आये दिन अपनी पत्नियों  बेटियों को पीटते नज़र आएंगे। ये पुरुष प्रधानता आपको रोज़ मर्रा कि ज़िन्दगी में देखने को मिल जायेगी , किसी को लड़की के सर पर पल्लू चाहिए तो किसी को उससे खाना बनवाना है कोई आपको कहता मिल जाएगा कि औरत को हमेशा मर्द की बात माननी चाहिए , मर्द से दबकर रहना चाहिए। कभी लड़की जबाव दे दे तो  मर्दों का रोआँ दुखी हो जाता है की लड़की होकर इतनी मज़ाल।  लड़कियां हमेशा इनके लिए अपनी मर्दानगी साबित करने का जरिया रही हैं , फलां लड़की मेरी गर्लफ्रेंड न बनकर दूसरे के साथ क्यों घूम  रही है , या

मेरी बेटी या बहन मेरी मर्ज़ी के बिना कैसे शादी कर सकती है , मेरी पत्नी ने हिम्मत कैसे की मेरा आदेश न मानने की।  और धर्मों की बात ही करना बेकार है किसी भी धर्म गुरु या मौलवी को सुन लीजिये सब एक से एक स्त्री विरोधी बातें  नज़र आएंगे , राम रहीम और आशाराम को तो हम देख ही चुके हैं , ऐसे ही आरोप आपको मौलवियों और पादरियों पर भी मिल जायेंगे ।  
  


अब बात करते है ऐसे अपराधों पर एनकाउंटर की समर्थन करने वालों की , दरअसल हत्या और  मृत्युदंड में मूलभूत अंतर है , हत्या एक विकृत मानसिकता वाला अपराधी करता है और मृत्युदंड एक सभ्य समाज में अपराधी को सजा देने का प्रावधान है।  सभ्य समाज को हत्या के बदले हत्या का समर्थन नहीं करना चाहिए।  हाँ जघन्य अपराधों में मृत्युदंड देने के तरीके क्रूर और बर्बर हो सकते हैं जिससे की ऐसे अपराधियों में भय पैदा किया जा सके।  और दूसरी बात ऐसे अपराधों में न्यायालय को भी पहली सुनवाई में ही फैसला सुना देना चाहिए और ऐसे अपराधियों को अपील करने का भी अधिकार नहीं होना चाहिए जंहा साफ़ तौर पर सबूत अपराध को साबित करते हैं. न्यायालय में लगने वाली देरी और अपीलों की वजह से ही आज समाज हत्या के बदले हत्या का समर्थन करने लगा है  , जबकि सभ्य समाज में ऐसी नौबत आनी ही नहीं चाहिए थी। 


बाकी आप एनकाउंटर कर दीजिये , सजा बर्बर तरीके से दे दीजिये लेकिन ऐसे अपराधों पर तबतक लगाम नहीं लगा पाएंगे जबतक समाज स्त्रियों के प्रति अपना नजरियां नहीं बदलता , जबतक उन्हें संपत्ति समझना बंद नहीं कर  दिया जाता। कुछ लोग इस बात से असहमत हो सकते हैं , लेकिन ये वही लोग हैं जिन्होंने मेट्रो सिटीज में कुछ लड़कियों को स्वछंदता से जीवन जीते देखा है , लेकिन मेट्रो सिटीज में दिखने वाला ये बराबरी का जीवन दरअसल असली भारत की हक़ीक़त  कंही दूर हैं , गांव  और गरीब बस्तियों में हक़ीक़त कुछ और ही है।  बाकी मेट्रो सिटीज के सभ्य समाज के बंद कमरों में भी आपको कितनी ही अत्याचार की कहानियां मिल जाएंगी , आफताब और श्रद्धा का केस ही इसका एक उदहारण है। पुरुष प्रधान मानसिकता को बदलने के लिए समाज को अभी एक लम्बा सफर तय करना है , जो सिर्फ अच्छे साहित्य और कला से ही संभव है , एक वैचारिक क्रांति से ही संभव है , तब आप कैंडल मार्च निकालते रहिये।     

आर्टिकल में दी गयी सभी घटनाओं के मीडिया लिंक :

https://timesofindia.indiatimes.com/city/delhi/sahil-khan-kills-sakshi-inside-details-of-delhi-teens-brutal-murder/articleshow/100613255.cms?from=mdr

https://indianexpress.com/article/cities/mumbai/husband-brother-in-law-arrested-for-murdering-chopping-womans-body-in-maharashtra-8644072/

https://www.indiatoday.in/crime/story/man-stabs-daughter-over-domestic-dispute-surat-video-2386698-2023-05-31

https://www.ndtv.com/india-news/aayushi-chaudhary-murder-case-father-shot-the-22-year-old-woman-whose-body-was-found-in-suitcase-in-mathura-3539814

https://www.hindustantimes.com/india-news/shraddha-walkar-killing-case-aftab-poonawala-charged-for-murder-101683609544768.html

https://www.thehindu.com/news/cities/Delhi/man-kills-girlfriend-and-hides-body-in-fridge-gets-married-same-day/article66509915.ece