उसे यह फ़िक्र है हरदम नया तर्ज़े-ज़फा क्या है,
हमे यह शौक़ है देखें सितम की इन्तहा क्या है।
दहर से क्यों खफ़ा रहें, चर्ख़ का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें।
कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहले-महफ़िल,
चराग़े-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ।
हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली,
ये मुश्ते-ख़ाक है फानी, रहे रहे न रहे।
(----------भगत सिंह)
क्रांति से हमारा क्या आशय है, यह स्पष्ट है । इस शताब्दी मे इसका सिर्फ एक ही मक़सद हो सकता है - जनता के लिये जनता द्वारा राजनीतिक शक्ति हासिल करना । वास्तव मे यही है क्रांति , बाकी सभी विद्रोह तो सिर्फ मालिको के परिवर्तन द्वारा पूंजीवादी सड़ाँध को ही आगे बढ़ाते हैं। किसी भी हद तक लोगो से या उनके उद्देश्यों से जतायी हमदर्दी जनता से वास्तविकता छिपा नही सकती , लोग छल को पहचानते हैं। भारत में हम भारतीय श्रमिक शासन से कम कुछ नहीं चाहते। भारतीय श्रमिको को - भारत में साम्राज्यवादियों और उनके मददगार को हटाकर जो उसी आर्थिक के पैरोकार हैं , जिसकी जड़े शोषण पर आधारित हैं -आगे जाना है। हम गोरी बुराईयों की जगह काली बुराईयों को लाकर कष्ट नहीं उठाना चाहते , बुराईयाँ स्वार्थी समूहों की तरह , दूसरे का स्थान लेने को तयार हैं।
हमें यह बात याद रखनी चाहिए की श्रमिक क्रांति के अतिरिक्त न किसी और क्रांति की इक्छा करनी चाहिए न ही वह सफल होगी। (--क्रांतिकारी कार्यक्रम का मसविदा - भगत सिंह )
हम भारतवासी क्या कर रहें हैं? पीपल की एक डाल टूटते ही हिन्दुओं की धार्मिक भावनाएं चोटिल हो जाती हैं. बुतों को तोड़ने वाले मुसलमानों के ताजिये नामक कागज़ के बुत का कोना फटते ही अल्लाह का प्रकोप जाग उठता है और फिर वह "नापाक"हिन्दुओं के खून से कम किसी वस्तु से संतुष्ट नहीं होता। मनुष्य को पशुओं से अधिक महत्व देना चाहिए , लेकिन यहाँ भारत में लोग पवित्र पशु के नाम पर एक दूसरे का सर फोड़ते हैं।
धार्मिक अन्धविश्वास कट्टरपन हमारी प्रगति में बहुत बड़े बाधक हैं और हमें उनसे हर हालत में छुटकारा पा लेना चाहिए। " जो चीज़ आज़ाद विचारों को वर्दाश्त नहीं कर सकती उसे समाप्त हो जाना चाहिए "
(- नौजवान भारत सभा , लाहौर , का घोषणापत्र , भगत सिंह )
अंग्रेजी दासता के विरुध संघर्ष तो हमारे युध का पहला मोर्चा है , अंतिम लड़ाई तो शोषण के विरुध है चाहे वह मनुष्य द्वारा मनुष्य का हो या एक राष्ट द्वारा दूसरे राष्ट का। (-- भगत सिंह)
मेहनतकश की तमाम आशाएं अब सिर्फ समाजवाद पर टिकी हैं और सिर्फ यही पूर्ण स्वराज्य और सब भेदभाव ख़त्म करने में सहायक साबित हो सकता है। (-- भगत सिंह)
भगत सिंह ने यह विचार आज़ादी की लड़ाई के वक़्त लिखे थे। और आज़ादी के ७७ सालों के बाद भी यही लगता है की हम वंही खड़े हैं। उन्होंने जिन बातों की चेतवानी दी थी आज वही सब घटित हो रहा हैं , पूँजीवादी शोषण अपने चरम पर है और पूरा देश आज काली बुराईयों की गिरफ्त में आ चुका है , धार्मिक कट्टरपन पहले ज्यादा भयानक रूप में हमारे सामने खड़ा है। मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण पूरी तरह हावी चुका है और गरीब , नौजवान देसी विदेशी पूंजीपतियों के सामने अपने आप को बेचने पर मजबूर हैं। भगत सिंह के विचारों के विपरीत कार्य करने वाले संगठन और नेता उन्हें श्रन्धांजलि देने की होड़ लगाये हुए हैं और उनके विचारों की बात करते ही मुह मोड़ने लगते हैं। ऐसे अंधकार भरे समय में यह जरुरी है की समझदार युवा वर्ग उनके अधूरे काम को अपने हाथों में ले और उनके संदेशों को जन जन तक ले जाए। आज के दौर में यह जरुरी है की मेहनतकश और शोषित जनता को भगत सिंह के विचारों तले संघठित किया जाये और उनके अधूरे सपने (श्रमिक क्रांति) को साकार किया जाये। श्रमिक क्रांति के द्वारा ही सही मायने में आज़ादी हासिल की जा सकती है और ऐसे समाज की स्थापना की जा सकती है जो मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण मुक्त एक सच्चा सामाज़वादी समाज होगा। हमें यह संकल्प लेना होगा की हम भगत सिंह को सिर्फ याद करने तक ही सीमित जाएँ , अपितु आम मेहनतकश में दोबारा क्रांतिकारी अलख जलाने के लिए उसी क्रांतिकारी स्परिट के साथ जुट जाना होगा तभी सही मायने में भगत सिंह का सपना साकार होगा।