निकोलाई अश्त्रोवस्की


"मैं अपने आस पास के लोगों को देखता हूँ बैलों कि तरह ह्रष्ट पुष्ट मगर मछलियों कि तरह उनकी रगों में ठंडा खून बहता है . निद्राग्रस्त ,उदासीन,शिथिल ऊबे हुए . उनकी बातों में कब्र कि मिटटी की बू आती हैं . मैं उनसे घ्रणा करता हूँ. मैं समझ नहीं सकता की किस तरह स्वस्थ और तगढ़े लोग आज के समय के उत्तेजनापूर्ण ज़माने में उब सकते हैं . मैं कभी इस तरह नहीं रहा और न ही रहूँगा."


"केवल किसी एक व्यक्ति के प्रेम के लिए जीना नीचता है. और केवल अपने लिए जीना निर्लजता है ."

"यदि मनुष्य को अपने निजी धंधों ही बड़े नजर आने लगें और सार्वजनिक जीवन उसकी चेतना में बहुत छोटा स्थान रखता हो तो उसके जीवन को लगी एक चोट विपत्ति के सामान हो उठती है फिर उसके मन में प्रश्न उठता है: जीने का  लाभ ही क्या है? किसके लिए जीयूं?"

"मैं ऐसे लोगों से स्वभावयता घ्रणा करता हूँ और उन्हें निक्रसठ समझता हूँ जो जीवन के निर्मम अघात पढने पर रोने बिलखने लगते हैं."

"यदि एक आदमी पशु के समान नहीं, संकीर्ण ह्रदय , स्वार्थी नहीं तो उसके लिए जीवन कभी कभी अंधकारमय हो उठेगा . कई लोग हैं जो केवल जिंदा रहना चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा देर तक जिंदगी से चिपके रहें और अपनी यथार्थ स्थिथि पर आँखे मूंदे रहें."

"मैं ऐसे लोगों से घ्रणा करता हों जो ऊँगली दुखने पर छटपटाने  लगता  हैं, जिसके लिए पत्नी कि सनक क्रांति से अधिक महत्व रखती है, जो ओछी इर्ष्या में घर कि खिड़कियाँ और प्लेटें तक तोड़ने लगता है."