Tuesday, February 18, 2025

मूढ़ता का महाकुंभ


आइए पहले आपको एक कपोल कल्पित पौराणिक कथा(माइथोलॉजी) का सार बताता हूं , पौराणिक कथा के अनुसार देवों और राक्षसों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया , मंथन से जो अमृत निकला उसकी बूंदे छिटकर चार जगहों पर गिरी हरिद्वार , नाशिक , इलाहाबाद और उज्जैन । तो भंते इन चार स्थान माने  गए पवित्र और दिव्य शक्ति से लैस। इनमें से भी इलाहाबाद में तीन नदियों का मिलन होता है तो वो सबसे ज्यादा पवित्र माना गया। हर छह साल में कुंभ एक बार होता है और हर बारह साल महाकुंभ। पुराणों की माने तो हर 12 साल में वही तिथियां और गृह नक्षत्र मिलते है जिनमें समुद्र मंथन हुआ था और अमृत निकला था। और शास्त्रों के अनुसार कुंभ स्नान से आपके पाप कर्म धूल जाते हैं और आपको मोक्ष प्राप्त होता है । इसके अलावा आध्यात्मिक लाभ जो है सो है ही। 

उपर लिखी दंतकथाओं से मन भर गया हो तो वैज्ञानिक चेतना से कुछ बातें की जाए , ऊपर लिखी बातों से यह तो स्पष्ट है कि ये सब कोरी बकवास है और न कभी समुद्र मंथन हुआ न ही अमृत निकला। न संगम नहाने से आपके पाप धुलते हैं न ही मोक्ष प्राप्त होता है। वास्तव में पाप धुलना और मोक्ष प्राप्त होना अपने आप में एक कोरी कल्पना ही है। 
हां ये सच है कि नदियों का मानव सभ्यता के विकास में बहुत योगदान रहा है , या कहें ही मानव सभ्यता का विकास हुआ ही नदियों के आसपास है , क्योंकि जीवन के लिए आवश्यक पानी नदियों से ही मिलता था । कुएं और बावली तो बहुत बाद में अस्तित्व में आए। इसलिए नदियों को जीवनदायिनी माना गया , और हमारे पूर्वजों ने नदियों की पूजा शुरू की । सिर्फ नदियां ही नहीं प्रकृति पूजा का हर उपादान इसी पर निर्भर करता है , फिर चाहे वो अग्नि की पूजा हो या सूर्य की , चंद्रमा की पूजा हो या हवा की। अच्छी फसल के लिए बारिश की आवश्यकता होती है तो बारिश करवाने वाले देवता की परिकल्पना कर ली गई। हर गांव कस्बों में आपको कुल देवी देवता देखने को मिल जायेंगे।
लेकिन असल सवाल यह है कि ये सब मान्यताएं तब विकसित हुई थी जब हम प्रकृति को समझते नहीं थे , उसमें होने वाली घटनाओं की कोई व्याख्या हमारे पास नहीं थी तो हमने उसे दैवीय मान लिया और पूजा शुरू कर दी। लेकिन अब हमारे पास विज्ञान की वजह से प्रकृति का पर्याप्त ज्ञान है । नदियों की उत्पत्ति से लेकर आग , हवा पानी , सूर्य , चन्द्र सबके बारे में एक वैज्ञानिक व्याख्या उपलब्ध है। यहां तक कि इंसान चांद और मंगल पर आज अपने यान भेज कर रिसर्च करने में लगा हुआ है। तब इस तरह की बातें मानना मूढ़ता के अलावा कुछ नहीं।


कुम्भ को लेकर शुरू से ही एक माहौल बनाया गया और ऐसे प्रचारित किया गया की ज्यादा से ज्यादा लोग कुम्भ पहुंचे, एक झूठ ये भी फैलाया गया कि ये महाकुंभ 144 साल बाद आया है , बाकी केंद्र और राज्य की फासीवादी सरकारें जिस तरह धर्म के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं उसका असर भी जनता पर साफ दिख रहा हैं। इतनी बड़ी संख्या में लोग कुंभ की तरफ दौड़े चले जा रहे है , सरकार भी रोज बढ़ा चढ़ा कर आंकड़े पेश कर देती है , कि इतनी करोड़ लोगों ने कुंभ में स्नान किया । न्यूज चैनल रोज इस बात को ग्लैमराइज करने में लगे हुए हैं। इतने प्रचार के बाद हर इंसान को FOMO  होने लगा है कि कुंभ न गए तो पता नहीं क्या छूट जाएगा।कुंभ में हुई भगदड़ में कितने लोग मर गए किसी को नहीं पता , कितनी जगह भगदड़ हुई ये भी नहीं पता सरकार ने अपनी अव्यवस्था पर बड़ी आसानी से पर्दा डाल दिया , न्यूज चैनल्स मुंह में पैसा ठूस दिया । 


इलाहाबाद और आसपास के क्षेत्रों में घंटों का जाम लगा था , पूरा शहर अभी भी अव्यवस्था का शिकार है। ऐसे में जहां सरकार को लोगों को कुंभ आने से मना करना चाहिए था वहां इसके उलट सरकार और ज्यादा भीड़ जुटाने का रिकॉर्ड बनाने में लगी है । और ये सब घटनाएं होने के बाद भी लोगों की मूढ़ता की पराकाष्ठा ये है कि अभी भी लाखों लोग कुंभ जाने के लिए भागे जा रहे है। इसी आपाधापी में दिल्ली स्टेशन पर हुई भगदड़ में भी 18 लोग मर गए(सरकारी आंकड़े) । जाने कितने रेलवे स्टेशनों से वीडियो आ रहे है कि लोग भेड़ बकरियों की तरह ट्रेन में ठुसे हुए कुंभ की तरफ दौड़े जा रहे हैं । कितने ट्रेन में शीशे तोड़कर लोग अन्दर घुसते देखे गए है। सहयात्रियों पर पानी डालते देखे गए है। क्या वास्तव यही धर्म है? क्या ये लोग सच में आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष की आस में भागे जा रहे हैं? या ये कुंभ सिर्फ और सिर्फ एक भेंड़चाल साबित हो रहा है , जहां लोग बिना किसी लॉजिक के बस डुबकी लगा लेना चाहते हैं। और सरकार ? सरकार को बस अपनी बढ़ाई और प्रचार से मतलब , सरकार आपकी इस मूढ़ता पर मन ही मन खुश हो रही है और सोच रही कितना आसान है लोगों को बेवकूफ बनाना। धर्म के नाम पर इन्हें कहीं भी धकेला जा सकता है , मोक्ष प्राप्ति के नाम इनकी जान भी ली जा सकती है और अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ा जा सकता है। संभ्रांत परिवार के लोग अपनी गाड़ियां लेके हाइवेज पर निकल चुके है , भीड़ से इतर अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खाते हुए कुंभ में VIP डुबकी लगाएंगे और आपको बताएंगे कि कितना दैवीय अनुभव रहा। कितनी अच्छी व्यवस्था है।

अगर वास्तव में लोगों को नदियों की महत्वा पता होती और नदियों को माता मानते होते तो ये इस तरह कुंभ में जाकर अपनी माता में पाखाना नहीं बहा रहे होते । आज ही पब्लिश हुई नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल बोर्ड की रिपोर्ट बताती है कि प्रयागराज में गंगा में मानव मल में पाए जाने वाले बैक्टीरिया बहुतायत में मिले है और ये पानी पीना तो दूर नहाने लायक भी नहीं है। अगर कुंभ की तरफ भागे जा रहे लोगों में जरा सी भी वैज्ञानिक चेतना होती तो ये लोग वहां जाकर कचरा फैलाने की बजाय सरकार से सवाल पूछ रहे होते , की नमामि गंगे योजना का क्या हुआ , इतने करोड़ खर्च करने के बाद भी नदियां साफ क्यूं नहीं हो रही? क्यों इतना सारा औद्योगिक कचरा नदियों में बहाया जा रहा है? क्यों नाले और सीवर नदियों में बहाए जा रहे है? क्यों धर्म के नाम पर इतना सारा कूड़ा नदी में बहाया जा रहा है? ये तो हम सभी जानते है कि जिन देशों में नदियों को माता नहीं बल्कि नदी की तरह माना जाता है वहां कितना साफ पानी है , और वहां लोग भी इतनी समझदार है कि नदियों के कोई कूड़ा कचरा नहीं फेंकते और सरकारें भी नदियों का ख्याल रखती है। लेकिन ये सब तो वैज्ञानिक चेतना से लैस समाज में ही संभव है। हमारे यहां तो सरकारें खुद लोगों को धर्म की आड़ में मूर्खता के दलदल में धकेलने में लगी हैं। और अमीर गरीब सब  बसें ट्रेन और अपनी गाड़ियां लेकर प्रयागराज दौड़े जा रहे हैं। कुंभ की जो पौराणिक कथाएं होगी सो होगी लेकिन ये सब देखकर एक बात तो साफ है कि ये मूढ़ता का महाकुंभ बनता जा रहा है जिसमें सब मूर्ख मिलकर अपनी रही सही चेतना की आहुति देने के लिए आतुर हैं।


निचे दिए गए लिंक में आप कुम्भ में हुई अव्यवस्था और गंगा के पानी के बारे में ग्रीन ट्रिब्यूनल की रिपोर्ट पढ़ सकते हैं :





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